तकनीकी शिक्षा की उपयोगिता मानव समाज अपने जीवन की सुविधानुसार जिन साधनों उप-साधनों का निर्माण करता है वें सभी साधन और उपकरण तकनीकी शिक्षा के अन्तर्गत आते हैं दूसरे शब्दों में सरल व साधारण बोल-चाल में कहें तो यह कह सकते हैं कि मानव द्वारा अपने दिमाग और हाथों से समय की आवश्यकतानुसार जो वस्तुएँ उत्पादित होती हैं वह तकनीकी शिक्षा का ही प्रतिफल होता है। ग्रामीण बोल-चाल में ’कारीगरी’ एवं वस्तु के निर्माता को ’कारीगर’ कहते हैं, उर्दू भाषा में इसी को ’दस्तकारी’ अर्थात हाथों द्वारा किया गया निर्माण कहते हैं।
पुराने समय में दस्तकारी की शिक्षा परम्परागत थी अर्थात अगर परिवार लुहार या अन्य किसी दूसरी दस्तकारी का काम करता था तो उसकी औलाद भी उसी दस्तकारी को अपने रोज़गार का साधन बनाती थी। कारण स्पष्ट है कि बालक को उस दस्तकारी की शिक्षा दीक्षा अपने ही घर से अपने माता-पिता से मिल जाती थी। इस प्रकार समाज स्थिर था अर्थात जिसका जो कार्य या व्यवसाय था उसका बच्चा भी वही काम करता था जिससे समाज में संघर्ष नहीं था सभी लोग अपने-अपने कार्यों पर केन्द्रित थे।
आज ऐसा नहीं है यह औद्योगिक युग है बड़े-बड़े कारखाने स्थापित हो जाने से परम्परागत दस्तकारी कारखानों एवं उद्योगों में बदल गयी है। दस्तकारी और उत्पादन के इस बदलाव ने समाज में ऐसी उथल-पुथल पैदा कर दी है कि व्यक्ति अपने ख़ानदानी काम को छोड़कर कारख़ानों की ओर मुड़ गया है। इन कारख़ानों में जिस प्रकार के कारीगरों या मैकेनिकों की आवश्यकता है उसको पूरा करने के लिए सरकार ने तकनीकी शिक्षा के केन्द्र स्थापित किये हैं इसी तकनीकी शिक्षा के लिए आई.टी.आई. भी एक संस्था है।
आई.टी.आई. में प्रवेश के लिए निम्नतम शिक्षा हाई स्कूल उत्तीर्ण है। आई.टी.आई. से अपनी इच्छित ट्रेड़ का प्रशिक्षण सफलता पूर्वक पूर्ण करने के पश्चात् आप सरकारी अर्ध-सरकारी सैक्टरों में एवं मल्टीनेशनल कम्पनीज़ में नौकरी प्राप्त कर सकते हैं अथवा अपना कार्य प्रारम्भ कर सकते हैं। उक्त कार्यों के प्रशिक्षण हेतु ‘विदर्भ माइनोरिटी मल्टीपरपज़ रूरल डेवल्पमेंट एजुकेशनल ट्रस्ट’ के तत्वाधान में २००५ में महाराष्ट्र सरकार से मान्यता प्राप्त आई. टी. आई. (रब्बानी इन्स्टिट्यूट फॉर टेक्निकल इम्प्रुव्ह्मेंट) की स्थापना की गई।